कृष्णा पाठक
लावालौंग प्रखंड क्षेत्र में लगभग 60 से अधिक ऐसे गांव हैं, जहां आजादी के इतने वर्षों बाद भी विकास की किरण नहीं पहुंची। प्रखंड क्षेत्र स्थित मंधनिया, सिलदाग, रिमी, और कोलकोले पंचायत के लगभग सभी गांवों की तस्वीर आजादी के 74 वर्ष बाद भी नहीं बदली है। जिले के सुदूरवर्ती क्षेत्र को देखते हुए लावालौंग को प्रखंड इस लिए बनाया गया था कि इस क्षेत्र का विकास संभव हो पाए। उम्मीद थी इससे विकास की किरण उन क्षेत्रों में फूटेंगे जहां कोई राजनेता और अधिकारी नहीं पहुंचते हैं। लेकिन ढाक के तिन पात वाला नतिजा हुआ। नेताओं का काफिला उन सुदूरवर्ती गांवों में कभी कभार चुनावों के मौसम में ही पहुंचते हैं। चुनाव जीतने के बाद उन क्षेत्रों का विकास राम भरोसे ही रह जाता है। प्रखंड मुख्यालय से सटे एक से दो किलोमीटर की दूरी पर कई ऐसे गांव बसे हैं, जहां आज भी मूल भूत सुविधा नहीं पहुंच पाई है। हुटरू, जलमा, सिकनी, हाहे, और सिलदाग समेत 60 से अधिक गांव के लोग आज भी ढिबरी युग में अपना जीवन जीने को मजबूर हैं। इन गावों के लोग आज भी बिजली, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मूलभूत सुविधाओं से वंचित है।

गांवों में चार पहिया तो दूर दो पहिया वाहनों से भी जाना कोई जंग लड़ने से कम नहीं है। बरसात के दिनों में बीमार पड़ जाने पर अस्पताल तक लाना मुश्किल हो जाता है। बिजली नहीं होने के कारण ग्रामीणों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। वर्तमान समय में केरोसिन की महंगाई के कारण रात्रि को बच्चे अपने घरों में पढ़ाई नहीं कर पाते हैं। जन प्रतिनिधियों और सरकारी तंत्रों की इच्छा शक्ति नहीं होने के कारण खाका तैयार योजनाएं भी जमीन पर उतारे नही जाते हैं। सड़कें नहीं होने से रिमी व कोलकोले पंचायत प्रखंड मुख्यालय से लगभग कटे हुए हैं। आए दिन इन पंचायतों के मार्ग में दुर्घटनाएं होती रहती है। एक वाक्य में कहें तो लावालौंग प्रखंड को आजादी को 74 वर्षों बाद भी विकास का इंतजार है।