लावालौंग। प्रतिनिधि
प्रखंड क्षेत्र स्थित हेडुम गांव में सरहुल का इतिहास सैकड़ो वर्षों पुराना है। यहां हर वर्ष मानसून के पहले यह त्यौहार काफी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। जिसमें ग्रामीण अपने ग्राम देवता की पूजा करते हैं और गांव में समृद्धि के साथ-साथ अच्छी फसल की कामना करते हैं। इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए बुधवार से गांव में सरहुल का त्यौहार आरंभ हो गया है। सरहुल के दिन गांव में किसी भी घर में चूल्हा तभी जलता है जब ग्रामीण अपने ग्राम देवता की पूजा कर लेते हैं। यह त्यौहार गांव में लगभग एक सप्ताह तक चलता है। जिसमें गांव अपने अलग ही रंग में नजर आता है। इस दौरान सभी ग्रामीण उंच-नीच, स्त्री-पुरुष सारे भेद भुलाकर गांव के बीचो-बीच स्थित माड़र में जमा होते हैं। और अपने पारंपरिक वाद्य यंत्र मांदर और नगाड़े के थाप पर नाचते गाते हैं। प्रखंड के 20 सूत्री अध्यक्ष सह वरिष्ठ नेता छठु सिंह भोक्ता के अनुसार यह त्यौहार हेडुम गांव में 200 वर्षों से भी अधिक पुराना है। वह कहते हैं की गांव के किसी भी बुजुर्ग से बुजुर्ग व्यक्ति को भी यह पता नहीं है कि यह त्यौहार कितने वर्षों से मनाया जा रहा है। सरहुल के दौरान गांव में काफी खुशनुमा और उत्सव का माहौल होता है। जिसमें ग्राम देवता की पूजा के बाद गांव के प्रत्येक घर में सरई का फूल लगाया जाता है। सरहुल के बाद ही गांव में किसी भी प्रकार का खेती बाड़ी से संबंधित कार्य शुरू किया जाता है। बुधवार से शुरू हुए इस त्यौहार में पहले दिन बहर्षि पूजा और शुक्रवार को ग्राम देवता का पूजा किया गया। इसके बाद अब अगले 5 दिनों तक घूम घूम कर गांव का पाहन प्रत्येक घर में सरई का फूल लगाने का कार्य करेगा। जिसके कारण अगले 5 दिनों तक गांव में ढोल मांदर और शहनाई की धुन सुनाई देते रहेगी। सरहुल के कार्यक्रम के दौरान पूजा स्थल पर गांव के हजारों लोग उपस्थित थे।