आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस जरूर है, लेकिन योग के नाम पर जो कुछ प्रचारित और प्रसारित किया जाता है, वह मूल योग का दसवां हिस्सा भी नहीं है। मूल योग, यानी अष्टांग योग। यह असल में संपूर्ण दर्शन है। आज योग के नाम पर करोड़ों का साम्राज्य जरूर खड़ा कर लिया गया है, लेकिन असल अष्टांग योग की चर्चा तक नहीं की जाती। मानो उसे पूरी तरह से भुला दिया गया है। अष्टांग, यानी आठ अंग। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि- ये सभी मिलकर ही अष्टांग योग बनाते हैं। किसी व्यक्ति के लिए, आत्मशुद्धि के क्रम में समाधि तक पहुंचने का इतना व्यवस्थित तरीका विश्व में शायद ही कहीं और देखने को मिलता है। यह मन को, समाज से मिले उद्दीपनों से निजात दिलाने, स्वयं मन की अशुद्धियों (मन के विकारों) से मन को मुक्त करने, शरीर को स्वस्थ रखने, मन को विषयों से विमुख करने, ध्यान द्वारा स्वयं से साक्षात्कार करने की यात्रा है। मगर विडंबना है कि महान ऋषि पतंजलि के अद्भुत योग दर्शन को मात्र योगासन और अनुलोम-विलोम तक समेअकर ‘योगा’ कहकर प्रचारित किया जाता है, जिसने योग के असली स्वरूप से लोगों को वंचित ही किया है।