कृष्णा पाठक
भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी, कांग्रेस, आज अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। एक समय था जब यह पार्टी देश की राजनीति की धुरी हुआ करती थी, लेकिन आज इसकी स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। चुनाव दर चुनाव कांग्रेस का जनाधार खिसक रहा है और पार्टी अंदरूनी कलह और कमजोर संगठन नेतृत्व संकट से जूझ रही है।

कांग्रेस का नेतृत्व लंबे समय से गांधी परिवार के इर्द-गिर्द घूमता रहा है। हालांकि, वर्तमान समय में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जैसे नेता पार्टी को पुनर्जीवित करने में विफल रहे हैं। राहुल गांधी की अनिश्चित राजनीति और चुनावी असफलताओं ने कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ दिया है। वहीं, वरिष्ठ नेताओं का पार्टी छोड़कर जाना यह साबित करता है कि नेतृत्व अपनी पकड़ बनाए रखने में नाकाम रहा है।
संगठनात्मक ढांचा और जमीनी पकड़ की कमी
कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी आज उसकी जमीनी पकड़ का कमजोर होना है। राज्यों में पार्टी नेतृत्व प्रभावी नहीं है और कई राज्यों में पार्टी का कोई ठोस संगठन ही नहीं बचा है। कार्यकर्ता दिशाहीन महसूस कर रहे हैं, जिससे पार्टी चुनावी रण में कमजोर साबित हो रही है। पार्टी जिस राज्य में अकेले चुनाव लड़ती है, वहां उसे मुंहकी खानी पड़ती है।
विचारधारा का अभाव
कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती उसकी विचारधारा को लेकर बनी अस्पष्टता है। एक ओर वह धर्मनिरपेक्षता की बात करती है, तो दूसरी ओर वह नरम हिंदुत्व का रास्ता अपनाने की कोशिश करती है। यह दुविधा मतदाताओं में भ्रम पैदा कर रही है। इसके विपरीत, बीजेपी और अन्य क्षेत्रीय दलों की स्पष्ट विचारधारा उन्हें जनता से जोड़ने में मदद कर रही है।
भ्रष्टाचार के आरोप और विश्वसनीयता की गिरावट
कांग्रेस का अतीत भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा रहा है। बोफोर्स घोटाले से लेकर 2G, 3G और कोयला घोटाले तक, कई घोटालों ने पार्टी की छवि को भारी नुकसान पहुंचाया है। जनता में यह धारणा बन चुकी है कि कांग्रेस सत्ता में आती है तो भ्रष्टाचार बढ़ता है।
चुनावी असफलताएं और गिरती लोकप्रियता
2014, 2019 और 2025 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। राज्य विधानसभा चुनावों में भी पार्टी की स्थिति कमजोर होती जा रही है। जहां बीजेपी और क्षेत्रीय दल आक्रामक चुनावी रणनीतियों से आगे बढ़ रहे हैं, वहीं कांग्रेस अब भी पुरानी राजनीति के भरोसे बैठी हुई है
क्या कांग्रेस फिर से खड़ी हो पाएगी?
कांग्रेस के सामने अब दो ही रास्ते हैं—या तो वह आत्ममंथन करके संगठन में आमूलचूल परिवर्तन करे, या फिर धीरे-धीरे भारतीय राजनीति में अप्रासंगिक हो जाए। उसे जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करना होगा, नए नेतृत्व को मौका देना होगा और अपनी विचारधारा को स्पष्ट करना होगा। वरना आने वाले समय में कांग्रेस महज़ इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह जाएगी।