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November 15, 2024 4:30 am

आजाद दिन, क्या हम सच में आज़ाद हैं : राहुल

कई बार सुना, “क्या सच में आजाद हैं?” दो सुंदर जवाब भी कई बार सुने गए हैं। ‘हाँ’ आजाद ही तो हैं। वहीं दूसरी ओर किसी ने कहा- “ऐसी आजादी किस काम का, आजाद होकर भी गुलाम? थोड़ा मंथन मेरे मन- मस्तिष्क को झकझोरता चला गया। जिनके जवाब “हाँ” थे। क्या वह सही थे? किस बात की आजादी, क्या यह आजादी कि जिंदगी में हर कदम पर डर हो? कभी कुछ गलत ना हो जाए का डर, तो कभी कोई कुछ गलत करने पर मजबूर ना कर दे का डर हो। कभी किसी की बात ना मानने का डर हो तो कभी बात मान कर जिंदगी का बड़ा हिस्सा किसी दूसरे के मन- मुताबिक बिताने का डर। अगर डर है तो आजादी कैसी?

अब दूसरे जवाब पर भी मंथन की जरूरत थी। मैंने वैसा ही किया। मैंने विचारों को स्वच्छंद चलने दिया। कुछ विरोधाभासी विचार जिन्होंने मुझे पुनः झकझोरा और सोचने पर मजबूर किया, क्या सच में आजादी के लिए लड़ने वालों का बलिदान सार्थक रहा? क्या उन्होंने कभी सोचा होगा कि इतनी मेहनत से “आजाद दिन” के सपने बोने वाले लोगों के बलिदान को एक जवाब मिलेगा, “आजादी किस काम की?”

गुस्से का बवंडर फूटता है, जब कभी ऐसी बातें सुनता हूँ। इस आधुनिकता ने इतनी आजादी तो दी ही है कि अपने मन – मुताबिक कार्यों का संपादन किया जा सके। घर- परिवार समाज तथा देश के लिए सोचा जा सके तथा सक्रियतापूर्वक अपना योगदान दिया जा सके। तब ऐसे जवाब का क्या अर्थ बनता है जिसमें सार्थकता की कमी दिखे?

जवाब जो भी हो पर सोचना है, क्या “आजाद दिन” में हम खुद को आजाद कर पाए हैं? हां या नहीं। अजीब बात तो ये है कि अलग -अलग उम्र के लोगों से आजादी को परिभाषित करने को कहा जाता है तो उनकी परिभाषा में भी भिन्नता आ जाती है। पर क्या अपने- अपने विचारों के आधार पर सच में आजादी का अर्थ इतना भिन्न हो सकता है?

बस यह हमारे विचारों का खेल है जिसने हमें आजाद या गुलाम बना कर रखा हुआ है। हमने कभी आत्मा- अवलोकन किया ही नहीं। दूसरों के कार्यशैली एवं रहन- सहन का अध्ययन करने में हम महारथी बन चुके हैं, पर जब स्वयं पर अवलोकन के प्रयोग की बात आती है तब हम नौसिखिया व्यक्ति की तरह अभिनय करने में सर्वश्रेष्ठ दिखते हैं। जब तक हम विचारों का अवलोकन नहीं करेंगे, तब तक दिन हमें आजाद नहीं लगेंगें और यह “आजाद दिन” की परिकल्पना एक कल्पना ही बनकर रह जाएगी। तो चलें इस स्वतंत्रता दिवस पर हम स्वयं के विचारों पर विचार करने की प्रतिज्ञा लें।

लेखक के अपने विचार हैं।
राहुल कुमार पांडेय
शिक्षक हाई स्कूल

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