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November 15, 2024 9:48 am

अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर गए पूर्व राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी को यूएई ने शरण दी

काबुल पर तालिबान के नियंत्रण के बाद अफ़ग़ानिस्तान से भागे पूर्व राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी संयुक्त अरब अमीरात जा पहुंचे हैं

संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी करके बताया है कि उन्होंने ”मानवीय आधार पर राष्ट्रपति ग़नी और उनके परिवार का अपने देश में स्वागत किया है।” अशरफ़ ग़नी बीते रविवार को काबुल पर तालिबान लड़ाकों के नियंत्रण के दौरान अफ़ग़ानिस्तान से चले गए थे। अमेरिका ने इस कदम के लिए उनकी कड़ी आलोचना की थी और कहा है कि अफ़ग़ान सरकार ने सही कदम उठाए होते तो काबुल पर तालिबान का इस तरह से क़ब्ज़ा ना होता।

अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी

कितनी रकम लेकर गए अशरफ़ ग़नी ?

ताजिकिस्तान में अफ़ग़ानिस्तान के राजदूत मोहम्मद ज़हीर अग़बर ने दावा किया है कि अशरफ़ ग़नी ने रविवार को जब काबुल छोड़ा था, तब वे अपने साथ लगभग 16.9 करोड़ डॉलर लेकर गए थे। उन्होंने राष्ट्रपति के तौर पर अशरफ़ ग़नी की लड़ाई को ”अपनी ज़मीन और अपने लोगों से विश्वासघात” बताया है। ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में अफ़ग़ान दूतावास में संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने ये भी कहा कि दूतावास, ग़नी के पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह को अफ़ग़ानिस्तान के कार्यवाहक राष्ट्रपति के तौर पर मान्यता देने पर विचार कर रहा है। बीते रविवार को काबुल से जाते-जाते अशरफ़ ग़नी ने लिखा था, “बहुत से लोग अनिश्चित भविष्य के बारे में डरे हुए और चिंतित हैं। तालिबान के लिए ये ज़रूरी है कि वो तमाम जनता को, पूरे राष्ट्र को, समाज के सभी वर्गों और अफ़ग़ानिस्तान की औरतों को यक़ीन दिलाएं और उनके दिलों को जीतें।” शुरुआती रिपोर्ट्स में कहा गया था कि अशरफ़ ग़नी ताजिकिस्तान भागे हैं। हालांकि तब अल-जज़ीरा ने बताया था कि ग़नी, उनकी पत्नी, सेना प्रमुख और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद गए हैं।

देश से भागने पर दी सफ़ाई

एक फ़ेसबुक पोस्ट में अफ़ग़ान नागरिकों को संबोधित करते हुए ग़नी ने कहा था कि राजधानी को छोड़ना एक कठिन फ़ैसला था जो उन्होंने रक्तपात को रोकने के लिए लिया। वो लिखते हैं कि उनके रहते हुए तालिबान के काबुल में आने के बाद झड़प होती जिससे लाखों लोगों की ज़िंदगियां ख़तरे में पड़ जातीं। उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा, “आज मुझे एक मुश्किल फ़ैसला करना था कि या तो मैं सशस्त्र तालिबान जो महल (राष्ट्रपति भवन) में दाख़िल होना चाहते थे उनके सामने खड़ा हो जाऊं या फिर अपने प्यारे मुल्क जिसकी बीते 20 सालों में सुरक्षा के लिए मैंने अपनी ज़िंदगी खपा दी उसे छोड़ दूं।” अगर इस दौरान अनगिनत लोग मारे जाते और हमें काबुल शहर की तबाही देखनी पड़ती तो उस 60 लाख आबादी के शहर में बड़ी मानवीय त्रासदी हो जाती। उन्होंने आगे लिखा कि तालिबान ने तलवारों और बंदूक़ों के ज़ोर पर जीत हासिल कर ली है, और अब मुल्क की अवाम के जानो माल और इज़्ज़त की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी तालिबान पर है। उन्होंने कहा, “वो दिलों को जीत नहीं सकते हैं। इतिहास में कभी भी किसी को सिर्फ़ ताक़त से ये हक़ नहीं मिला है और न ही मिलेगा। अब उन्हें एक ऐतिहासिक परीक्षा का सामना करना है, या तो वो अफ़ग़ानिस्तान का नाम और इज़्ज़त बचाएंगे या दूसरे इलाक़े और नेटवर्क्स।”

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